आईपीएस रतन लाल डांगी ने बीआईटी भिलाई के ऑडिटोरियम में राज्यपाल रामेन डेका के हाथों पीएचडी की डिग्री की प्राप्त
रायपुर
हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग के शोधार्थी रतन लाल डांगी (वरिष्ठ आईपीएस) ने बीआईटी भिलाई के ऑडिटोरियम में विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह में राज्यपाल रामेन डेका के हाथों डॉक्ट्रेट (पीएचडी) की डिग्री प्राप्त की. बता दें कि डांगी ने अपना शोध कार्य निर्देशक डी. सुनीता मिश्रा, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान शासकीय नवीन महाविद्यालय खुर्सीपार भिलाई एवं सहायक निर्देशक डॉ. प्रमोद यादव विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान, सेठ आरसीएम कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय दुर्ग के निर्देशन में पूरा किया है.
आईपीएस डांगी के शोध का टॉपिक था “छत्तीसगढ़ में माओवादी समस्या के उन्मूलन में सहायक पुलिस आरक्षकों की भूमिका (जिला बीजापुर के संदर्भ में)”. ज्ञात रहे डांगी ने अपने कैरियर की शुरुआत देश के सबसे अधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर संभाग से ही की थी. वो एसडीओपी उत्तर बस्तर कांकर एसपी पश्चिम बस्तर बीजापुर, एसपी उत्तर बस्तर कांकेर, एसपी बस्तर, डीआईजी उत्तर बस्तर कांकेर एवं दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा में पदस्थ रहे हैं. इन्होंने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरी समस्या माओवाद को नजदीक से देखा है एवं इसका मुकाबला भी किया है. जिला बीजापुर में पुलिस अधीक्षक रहते हुए नक्सलियों के विरुद्ध अभियानों का नेतृत्व करने से उनको राष्ट्रपति द्वारा दो बार पुलिस वीरता पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है.
माओवादियों के विरुद्ध आदिवासियों का स्व स्पूर्त जन आंदोलन सलवा जुडूम के समय डांगी बीजापुर जिले के पुलिस अधीक्षक थे. उस दौरान माओवादियों ने आदिवासियों के राहत शिविरों एवं सलवा जुडूम नेताओं पर लगातार हमले कर रहे थे. उनकी सुरक्षा के लिए सरकार ने स्थानीय युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी नियुक्त किया. इन युवाओं (एमपीओ) के सहयोग से पुलिस ने सघन नक्सल विरोधी अभियान चलाया, जिससे नक्सलियों के बस्तर से पैर उखड़े. उनके समर्थकों ने विशेष पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की ,जिस पर सुनवाई में न्यायालय ने एसपीओ की नियुक्तियों को अवैध ठहराकर सरकार को तुरंत इनकी नियुक्ति को निरस्त करने के निर्देश दिए.
स्थानीय युवाओं की नक्सल विरोधी लड़ाई में उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने सहायक सशस्त्र पुलिस बल अधिनियम बनाकर सभी एसपीओ को सहायक पुलिस आरक्षक के पद पर नियुक्त करके सीटीजेडब्ल्यू में विशेष प्रशिक्षण दिलाकर नक्सल मोर्चे पर तैनात कर दिया. इन सहायक पुलिस आरक्षकों की मदद से पुलिस को नक्सल विरोधी अभियानों में अपार सफलताएं मिली. नक्सलियों का प्रभाव क्षेत्र भी सिकुड़ने लगा था.
डांगी ने अपने शोध में भी यह पाया कि 99 प्रतिशत युवाओं ने एसपीओ सहायक पुलिस आरक्षक बनने का कारण में नक्सलियों को खत्म करने एवं क्षेत्र के विकास करने को बताया है. 90 प्रतिशत युवाओं ने यह माना कि उनके सहायक पुलिस आरक्षक बनने से स्वयं के साथ ही परिवार ने प्रगति की है. 85 प्रतिशत युवाओं ने माना कि उनके सहायक पुलिस आरक्षक बनने के बाद से उनके गाँव में विकास कार्य हुए हैं. 92 प्रतिशत युवाओं ने माना है कि उनके सहायक पुलिस आरक्षक बनने से नक्सली वारदातों में कमी आई है. 94 प्रतिशत का कहना है कि नक्सल विरोधी अभियानों में तेजी आई है.
शोध के दौरान 96 प्रतिशत युवाओं ने बताया कि उनके पारिवारिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि में भी सुधार आया है. 91 प्रतिशत सहायक पुलिस आरक्षकों का कहना है कि उनके इस पद पर नियुक्ति से क्षेत्र के युवाओं का नक्सलियों से मोहभंग हुआ है. साथ ही 91 प्रतिशत का कहना है कि इससे उनके क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं. छत्तीसगढ़ में 2011 के बाद सहायक पुलिस आरक्षकों की नियुक्ति से लगातार नक्सली घटनाओं में कमी आई है. सुरक्षा बलों, आमजनों की मौतों में भी कमी आई है। साथ ही नक्सलियों की मौतों, गिरफ्तारियों एवं उनके आत्म समर्पण की संख्याएं बढ़ी है. क्षेत्र में विकास कार्यों ने भी गति पकड़ी है. डांगी का कहना है कि इस प्रकार की समस्याओं (सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक) का समाधान स्थानीय युवाओं की सहभागिता से ही संभव है. बता दें कि रतन लाल डांगी वर्तमान में राज्य पुलिस अकादमी में निदेशक के पद पर कार्यरत हैं.