अब रूसी सरकार ने सैन्य सहयोग को बढ़ाने के लिए एक मसौदा लॉजिस्टिक समझौते को स्वीकृति दी
मास्को
भारत और रूस की दोस्ती दशकों पुरानी है और सोवियत जमाने से ही भारत को मिग और सुखोई जैसे अत्याधुनिक रूसी फाइटर जेट और हथियार मिलते रहे हैं। अब एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में रूसी सरकार ने सैन्य सहयोग को बढ़ाने के लिए एक मसौदा लॉजिस्टिक समझौते को स्वीकृति दी है। इस समझौते के बाद दोनों ही देशों की सेनाओं के बीच ऑपरेशनल संबंध बढ़ेगा। इस समझौते के बाद दोनों ही देश एक-दूसरे को विभिन्न सैन्य अभियानों में लॉजिस्टिकल सपोर्ट करेंगे जिसमें शांतिरक्षक मिशन, मानवीय सहायता और संयुक्त सैन्य अभ्यास शामिल है। इसमें रिफ्यूलिंग, मेंटेनेंस और सप्लाई का प्रावधान शामिल है। वहीं रूसी मीडिया का कहना है कि इस समझौते के बाद रूसी सैनिकों, फाइटर जेट और युद्धपोतों की तैनाती हो सकेगी।
स्पूतनिक की रिपोर्ट के मुताबिक इस मसौदा समझौते को रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर बनाया गया है। साथ ही भारतीय पक्ष से भी आरंभिक सलाह ली गई है। रूस के पीएम मिखाइल मिशूस्टिन ने रूसी रक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह भारत के साथ मसौदा समझौते पर बातचीत करें ताकि दोनों देशों में सैनिकों की तैनाती के तरीके पर बातचीत करें। रूसी विशेषज्ञ डॉक्टर एलेक्सी कुपरियानोव ने कहा, 'इस समझौते का उद्देश्य जब रूसी या भारतीय सैनिक संयुक्त अभ्यास के लिए तैनात किए जाएं तो नौकरशाही वाली बाधाओं को खत्म करना है।'
भारत-रूस के बीच समझौते में क्या नया?
एलेक्सी ने कहा कि इस तरह के दस्तावेज कानूनी रूप से इस तरह की तैनाती की प्रक्रिया को औपचारिक रूप देते हैं। इस तरह का एक समझौता पहले से ही है जो हर 5 साल में फिर से बढ़ जाता है। उन्होंने कहा, 'इस समझौते में मुख्य अपडेट सैनिकों के लिए पासपोर्ट और वीजा कंट्रोल को शामिल किया जाना है जिसे पहले छूट दी गई थी। वहीं एक अन्य रूसी राजनीतिक विश्लेषक स्टानिस्लाव का कहना है कि यह समझौता व्यापक यूरेशियाई सुरक्षा के लिए है। यह नॉर्थ साऊथ कॉरिडोर प्रॉजेक्ट से जुड़ा हुआ है जिसमें भारत, पाकिस्तान, चीन और ईरान जैसे देश शामिल हैं।
स्टानिस्लाव ने कहा कि दोनों देशों के बीच इस प्रॉजेक्ट का उद्देश्य एकीकृत सुरक्षा रणनीति के लिए कनेक्टिविटी और आर्थिक सहयोग बढ़ाना है। एक अन्य रूसी विशेषज्ञ निकोलाई कोस्टिकिन का कहना है कि यह समझौता अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि भारत और रूस की भागीदारी मजबूत हो रही है। उन्होंने कहा कि नाटो ब्लॉक के देश दुनियाभर के देशों पर बहुत ज्यादा दबाव बनाए हुए हैं। भारत और रूस के बीच यह समझौता नाटो के कदमों के खिलाफ कड़ा संदेश है।
नाटो की ओर से भारत पर क्या है दबाव?
निकोलाई ने कहा कि अगर रूस और चीन के बीच गठबंधन सभी के लिए स्वाभाविक तो भारत के सहयोग को बनाए रखने की पुष्टि को रूस के साथ रिश्ते बरकरार रखने की स्वीकृति है। बता दें कि यूक्रेन युद्ध के बीच भारत पर अमेरिका की ओर से दबाव है कि वह रूस के साथ रिश्ते को कम करे लेकिन भारत सरकार ने अभी भी दोस्ती को न केवल बरकरार रखा है, बल्कि अरबों डॉलर के तेल खरीदकर एक तरह से पुतिन की मदद की है। वह भी तब जब पश्चिमी देशों की नजर में पुतिन युद्धापराधी हैं।