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मोदी सरकार ने ‘One Nation, One Election’ पर बनाई कमेटी, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे अध्यक्ष

नईदिल्ली

एक देश, एक चुनाव के मामले पर मोदी सरकार गंभीरता के साथ विचार कर रही है। यही नहीं इसकी संभावनाओं पर विचार के लिए सरकार ने एक समिति का गठन कर दिया है, जिसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बनाए गए हैं। इस संबंध में जल्दी ही नोटिफिकेशन जारी किया जा सकता है। दरअसल केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र भी बुलाया है, जिसका एजेंडा अभी तक नहीं बताया है। लेकिन कयास लग रहे हैं कि शायद विशेष सत्र एक देश एक चुनाव को लेकर ही बुलाया गया है। हालांकि सरकार की ओर से अब तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।

संसदीय कार्य मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि जी-20 देशों की मीटिंग के बाद ही विशेष सत्र का एजेंडा तय किया जाएगा। लेकिन अब समिति के गठन के बाद यह कयास और तेज हो गए हैं कि विशेष सत्र 'एक देश एक चुनाव' पर चर्चा के लिए ही बुलाया गया है। लेकिन एक सवाल यह भी है कि क्या 'एक देश एक चुनाव' पर बनाई गई समिति 15 दिनों में ही अपनी रिपोर्ट सौंप देगी, जिस पर संसद में चर्चा हो पाए। ऐसे में संसद के विशेष सेशन को लेकर अब भी कयास ही चल रहे हैं।

क्या टल जाएंगे 5 राज्यों के चुनाव या पहले होंगे लोकसभा इलेक्शन?

बीते कुछ सालों में पीएम नरेंद्र मोदी कई बार लोकसभा चुनाव और राज्यों के विधानसभा चुनावों को साथ कराए जाने का सुझाव दे चुके हैं। इसी संबंध में अब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है, जो एक साथ चुनावों के संबंध में विचार करेगी। दरअसल इसी साल नवंबर और दिसंबर तक 5 राज्यों में चुनाव होने हैं। कयास यह भी लग रहे हैं कि यदि वन नेशन, वन इलेक्शन पर मुहर लगती है तो फिर ये चुनाव भी टाले जा सकते हैं और शायद यह भी लोकसभा इलेक्शन के साथ ही हों। एक चर्चा यह भी है कि इस बार लोकसभा के चुनाव ही कुछ महीने पहले कराए जा सकते हैं।

एक देश-एक चुनाव के क्या हैं लाभ?

एक देश-एक चुनाव की वकालत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं. इस बिल के समर्थन के पीछे सबसे बड़ा तर्क यही दिया जा रहा है कि इससे चुनाव में खर्च होने वाले करोड़ों रुपये बचाए जा सकते हैं.

पैसों की बर्बादी से बचना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं. इसके पक्ष में कहा जाता है कि एक देश-एक चुनाव बिल लागू होने से देश में हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी धनराशि बच जाएगी. बता दें कि 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये की भारी भरकम धनराशि खर्च हुई थी. पीएम मोदी कह चुके हैं कि इससे देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति धीमी नहीं पड़ेगी.

बार-बार चुनाव कराने के झंझट से छुटकारा

एक देश- एक चुनाव के समर्थन के पीछे एक तर्क ये भी है कि भारत जैसे विशाल देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं. इन चुनावों के आयोजन में पूरी की पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन यह बिल लागू होने से चुनावों की बार-बार की तैयारी से छुटकारा मिल जाएगा. पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी.

नहीं रुकेगी विकास कार्यों की गति

एक देश-एक चुनाव का समर्थन करने वालों का कहना है कि देश में बार-बार होने वाले चुनावों की वजह से आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती है. इससे सरकार समय पर कोई नीतिगत फैसला नहीं ले पाती या फिर विभिन्न योजनाओं को लागू करने में दिक्कतें आती हैं. इससे यकीनन विकास कार्य प्रभावित होते हैं.

काले धन पर लगेगी लगाम

एक देश-एक चुनाव के पक्ष में एक तर्क यह भी है कि इससे कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगने में मदद मिलेगी. चुनावों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर ब्लैक मनी के इस्तेमाल का आरोप लगता रहा है. लेकिन कहा जा रहा है कि यह बिल लागू होने से इस समस्या से बहुत हद तक छुटकारा मिलेगा.

एक देश-एक चुनाव से क्या हो सकते हैं नुकसान?

केंद्र सरकार भले ही एक देश-एक चुनाव के पक्ष में हो लेकिन इसके विरोध में भी कई मजबूत तर्क गढ़े जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि अगर ये बिल लागू होता है तो इससे केंद्र में बैठी पार्टी को एकतरफा लाभ हो सकता है. अगर देश में सत्ता में बैठी किसी पार्टी का सकारात्मक माहौल बना हुआ है तो इससे पूरे देश में एक ही पार्टी का शासन हो सकता है, जो खतरनाक होगा.

राष्ट्रीय-क्षेत्रीय पार्टियों में मतभेद

इसके खिलाफ एक तर्क यह भी बताया जा रहा है कि इससे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच मतभेद और ज्यादा बढ़ सकता है. कहा जा रहा है कि एक देश-एक चुनाव से राष्ट्रीय पार्टियों को बड़ा फायदा पहुंच सकता है जबकि छोटे दलों को नुकसान होने की संभावना है.

चुनावी नतीजों में हो सकती देरी

अगर एक देश-एक चुनाव बिल के तहत पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे तो इससे पूरी-पूरी संभावना होगी कि चुनावी नतीजों में देरी हो सकती हैं. चुनावी नतीजों में देरी से यकीनन देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी, जिसका खामियाजा आम लोगों को भी भुगतना पड़ेगा.

 

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