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आरा-बिहार में आरके सिंह पर ही उम्मीदवारी के 23 दिन बाद क्षेत्र में आने से हार का फूटा ठीकरा

आरा/सासाराम.

बिहार की आरा लोकसभा सीट पर बीजेपी की हार का ठीकरा पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह पर ही फूटा है। लोकसभा चुनाव रिजल्ट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की आंतरिक रिपोर्ट में सामने आया है कि आरके सिंह के क्षेत्र से गायब रहने के कारण पार्टी को आरा में हार का सामना करना पड़ा। रिपोर्ट में कहा गया है कि टिकट मिलने के 23 दिन बाद वे अपने क्षेत्र में गए थे। इससे जनता से उनका जुड़ाव नहीं हो पाया।

बता दें कि आरके सिंह बीते 10 सालों से आरा से सांसद रहे। पिछली मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री भी थे। बीजेपी ने इस चुनाव में उनपर फिर से भरोसा जताया, लेकिन सीपीआई माले के सुदामा प्रसाद ने उन्हें हरा दिया। आरा में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह की हार की कई वजहें बताई जा रही हैं। बीजेपी की आंतरिक रिपोर्ट में सामने आया है कि आरके सिंह का आरा में जमीन से जुड़ाव न होना, हार का सबसे बड़ा कारण रहा। बीजेपी एक नेता ने एचटी को बताया कि आरके सिंह आरा से 10 साल सांसद रहे, लेकिन वे क्षेत्र की जनता से संपर्क साधने में असफल रहे। यहां तक कि पार्टी कार्यकर्ताओं और जन प्रतिनिधियों से भी उनका जुड़ाव कम ही रहा। आरा से उनकी उम्मीदवारी घोषित होने के 23 दिन बाद वे क्षेत्र में प्रचार करने पहुंचे। पार्टी का मानना है कि आरा में आरके सिंह ने स्थानीय संगठनों को ज्यादा महत्व नहीं दिया। उन्होंने प्रदेश नेतृत्व की अनदेखी की और अपने विरोधी उम्मीदवार को कमतर आंकने की भी गलती की। इसके अलावा काराकाट में राजपूतों के निर्दलीय पवन सिंह के समर्थन में एकजुट होने से एनडीए के कुशवाहा वोट भी छिटक गए। इसका असर आरा समेत मगध और शाहाबाद क्षेत्र की अन्य सीटों पर भी पड़ा।

सासाराम में छेदी पासवान का टिकट काटे जाने से पासवान नाराज हो गए और महागठबंधन को वोट किया। आरा में भी पासवान जाति का वोट आरके सिंह को नहीं मिल पाया। अन्य कुछ सवर्ण जातियों और यादव वोटरों के भी महागठबंधन को वोट डालने से दक्षिण बिहार में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। 2024 के लोकसभा चुनाव में आरा सीट पर बीजेपी के आरके सिंह को सीपीआई माले के सुदामा प्रसाद से 59 हजार से ज्यादा वोटों से हार मिली।

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