कोर्ट PFI सदस्यों को नहीं मिली राहत, अदालत ने कहा- भारत को इस्लामिक देश बनाने की रची साजिश
मुंबई
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के तीन कथित सदस्यों को जमानत देने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि उन्होंने 2047 तक भारत को इस्लामिक देश में बदलने की साजिश रची थी. जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस श्याम चांडक की बेंच ने रजी अहमद खान, उनैस उमर खैय्याम पटेल और कय्यूम अब्दुल शेख की जमानत याचिका खारिज कर दी. उन पर 14 जून, 2022 को मालेगांव में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया कार्यालय के उद्घाटन में शामिल होने और फिर मुस्लिम समुदाय के मुद्दों को उठाने और किसी भी तरीके को अपनाकर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए मुस्लिम समुदाय की एकता की जरूरत का मुद्दा उठाने का आरोप लगाया गया था.
बेंच ने अपने आदेश में कहा कि आरोपियों ने आपराधिक बल का इस्तेमाल करके सरकार को डराने की साजिश रची. कोर्ट ने कहा, "एफआईआर में खुद ही सब कुछ साफ है. उन्होंने 2047 तक भारत को इस्लामिक देश बनाने की साजिश रची. वे न केवल प्रचारक हैं, बल्कि अपने संगठन के विजन-2047 दस्तावेज को लागू करने का इरादा रखते हैं."
कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपियों ने आपराधिक बल का इस्तेमाल करके सरकार को डराने के लिए समान विचारधारा वाले लोगों को अपने साथ शामिल होने के लिए उकसाया. इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि अपीलकर्ताओं ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर व्यवस्थित रूप से ऐसी गतिविधियां की हैं, जो राष्ट्र के हित और अखंडता के लिए हानिकारक हैं.
नासिक की कोर्ट ने खारिज की थी याचिका
करीब डेढ़ साल से जेल में बंद आरोपियों की जमानत याचिका नासिक की एक अदालत ने खारिज कर दी थी. इसके बाद आरोपियों ने अपने वकील अशोक मुंदरगी, मिहिर देसाई और हसनैन काजी के जरिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
अभियोजन पक्ष के मामले को देखने के बाद, बेंच ने पाया कि आरोपियों ने सोशल मीडिया ग्रुप पर 'विजन-2047' नाम से एक डॉक्यूमेंट शेयर किया था. बेंच ने कहा, "विजन-2047 दस्तावेज को देखने से पता चलता है कि यह भारत को इस्लामिक देश में बदलने की एक भयावह साजिश है."
अपने 15 पेज के आदेश में बेंच ने कहा कि यह अपीलकर्ताओं द्वारा उनके षड्यंत्र के तहत किए गए जघन्य कृत्य को अंजाम देने की साजिश है, जो भारत सरकार को डराने या उसके खिलाफ युद्ध छेड़ने की कोशिश करने की साजिश है.
बेंच ने प्रथम दृष्टया आरोपियों के खिलाफ सबूत पाया, जिसमें अभियोजन पक्ष ने कहा था कि आरोपियों का उद्देश्य अन्य धर्मों और भारत सरकार के प्रति नफरत को बढ़ावा देना और भारतीयों के बीच विभाजन पैदा करना था, जिससे भारत की एकता और अखंडता के लिए समस्या पैदा हो. आरोप है कि आरोपियों ने मुस्लिम समुदाय के लोगों के मन में नफरत पैदा करने और उन्हें भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए उकसाने के लिए विभिन्न बैठकें की थी.
UAPA के तहत दर्ज हुआ था केस
आतंकवाद निरोधक दस्ते ने भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश, धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था.