मध्‍यप्रदेश

MP में 7 सांसद बदलने तय, एक दर्जन से ज्यादा का कटेगा पत्ता

भोपाल

लोकसभा चुनाव 2024 के शेड्यूल का ऐलान मार्च के पहले सप्ताह तक हो सकता है। भाजपा उससे पहले ही बड़ी संख्या में टिकटों पर फैसला कर लेना चाहती है ताकि उसके उम्मीदवारों को तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सके। वहीं यूपी, एमपी जैसे बड़े राज्यों में भाजपा फेरबदल भी करने जा रही है और चर्चा है कि बड़ी संख्या में नए चेहरों को ही टिकट दिए जा सकते हैं। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटें हैं और यहां एक दर्जन से भी ज्यादा सांसदों को हटाकर नए चेहरों को मौका देने की रणनीति बन रही है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि कुल 5 सांसद तो ऐसे हैं, जो अब मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य हैं।

इन लोगों को अब राज्य में ही राजनीति का अवसर मिलेगा और सांसद के तौर पर नए नेताओं को मौका दिया जाएगा। इसके अलावा 2 सांसद ऐसे हैं, जो विधानसभा इलेक्शन में उतरे थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इन सांसदों में फग्गन सिंह कुलस्ते और गणेश सिंह शामिल हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इन दोनों नेताओं को इस बार शायद ही लोकसभा का टिकट मिल पाए। इसके अलावा विधायक बने नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, रीति पाठक, राकेश सिंह और उदय प्रताप सिंह भी शायद फिर से मौका न पा सकें।

पार्टी की ओर से तय प्रभारियों ने अपनी डिटेल रिपोर्ट नेतृत्व को सौंप दी है। इस पर मंथन के बाद ही टिकटों के ऐलान होने शुरू होंगे। माना जा रहा है कि फरवरी के आखिरी सप्ताह से भाजपा अपने उम्मीदवारों के नाम फाइनल करना शुरू कर देगी। पिछले दिनों ही खबर आई थी कि भाजपा नेतृत्व 70 प्लस की उम्र और कमजोर फीडबैक वाले नेताओं को दोबारा मौका नहीं देगा। इस खबर के बाद से ही वे नेता पसोपेश में हैं, जिनकी उम्र अधिक है और रिपोर्ट कार्ड भी पक्ष में नहीं दिख रहा। भाजपा को लगता है कि इसके जरिए ऐंटी-इनकम्बैंसी की भी काट होगी और नया नेतृत्व भी उभर सकेगा।

पर कांग्रेस की स्थिति एकदम उलट, पुराने नेताओं पर ही भरोसा

यह स्थिति कांग्रेस से एकदम उलट है। कांग्रेस में तो पार्टी पुराने नेताओं पर ही दबाव डाल रही है कि वे चुनाव में उतरें। इसकी एक वजह फंड की कमी भी है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि भाजपा कैंडिडेट्स के पास फंड की कमी नहीं है। ऐसे में हम यदि नए चेहरों को उतारेंगे तो उनकी स्थिति कमजोर दिखेगी। उन्होंने कहा कि हम तो नेताओं से यह भी कह रहे हैं कि यदि वे खुद चुनाव में नहीं उतरना चाहते हैं तो कम से कम एक लोकसभा सीट का काम ही संभाल लें। इससे उम्मीदवारों को बल मिलेगा और फंडिंग की किल्लत भी कम होगी।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button