राष्‍ट्रीय

जदयू ने राजद को मझधार में छोड़ा; राज्य की सबसे बड़ी पार्टी कम सीट पर लड़े या दूसरों को मनाए

पटना.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार के खिलाफ देशभर के दलों को एकजुट करने वाली पार्टी जनता दल (यूनाईटेड) एक मामले में यूनाईटेड है। उसने साफ किया है कि वह जीती हुई 16 सीटों पर समझौता नहीं करेगा। उसने 2019 के लोकसभा चुनाव में 17 सीटों पर प्रत्याशी दिए थे। जदयू की लाइन देखिए- "2024 के लोकसभा चुनाव में भी जदयू को 16-17 सीटें चाहिए। इसके बाद 40 में से 23-24 सीटें बचती हैं, जिनका बंटवारा राजद को अपने सहयोगियों के बीच करना है।"

मतलब, जदयू के अलावा बिहार की महागठबंधन सरकार में जो भी बंटवारा होगा, वह राष्ट्रीय जनता दल करे। यह राजद के लिए एक तरह से मझधार की स्थिति है। राज्य विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी राजद, सत्ता में शामिल सबसे छोटी पार्टी जदयू की बात मानती है तो उसे कांग्रेस-वामदलों से सिरफुटौव्वल भी करना पड़ेगा और विकासशील इंसान पार्टी समेत साथ जुड़ने वाले संभावित दलों से हाथ भी खींचना पड़ेगा। यह सब नहीं किया तो जदयू से मिली चोट का भी खुद इलाज करना पड़ेगा।

जदयू ने सीट बंटवारे में राजद को कहां छोड़ा
जदयू नेता केसी त्यागी ने दिल्ली में कहा कि 16 जीती सीटों के अलावा दूसरे नंबर पर रही एक सीट मिलाकर कुल 17 सीटें जदयू के खाते की हैं। पटना में जदयू कोटे के सबसे सीनियर मंत्री बिजेंद्र यादव ने भी 17 सीटों की बात की। जदयू के अंदरखाने से मिली जानकारी के अनुसार पार्टी 16 जीती सीटों पर कोई समझौता नहीं करेगी। अंतिम तौर पर खुद मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार यह बात कह देंगे, लेकिन अभी राजद-कांग्रेस के बीच समन्वय पर उनकी नजर है। राजद को जिन 23-24 सीटों को बांटना है, उसमें वामदल भी शामिल हैं। वामदलों की चिंता जाहिर करने सोमवार को डी. राजा भी पटना में नीतीश कुमार से मिले। लेकिन, बताया जा रहा है कि जीती सीटों पर जदयू कोई समझौता के लिए तैयार नहीं है। मतलब, राजद विकल्पहीन है शेष बच रही सीटों को बाकी दलों के बीच बांटने के लिए।

देश की सबसे पुरानी पार्टी और राज्य की सबसे बड़ी पार्टी चिंता में
विपक्षी दलों के INDIA के फॉर्मूले से बिहार में सीट शेयरिंग का फंसना तय था और वही हुआ। इंडी एलायंस में देश की सबसे पुरानी पार्टी सबसे ज्यादा ताकतवर दिख रही है और उसी हिसाब से वह प्रतिनिधित्व चाहती है। कांग्रेस ने 10-11 सीटों की मांग रखी है। कांग्रेस ने 2019 में एक सीट पर जीत दर्ज की थी। भाजपा-जदयू के साथ लोक जनशक्ति पार्टी के गठबंधन ने बाकी 39 सीटें अपने नाम की थीं। लोजपा तो भाजपा के साथ सीटों पर बात करेगी, लेकिन इस बार जदयू को फिलहाल राजद के साथ बात करनी है। और, यह बात चल भी रही है। राजद राज्य विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है और सरकार में भी। जदयू राज्य विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी है, लेकिन लोकसभा की जीती सीटों के हिसाब से भाजपा के बाद दूसरे नंबर की पार्टी। इसलिए, यह पेच फंसा हुआ है। कांग्रेस और राजद की परेशानी से वामदलों में भी चिंता है और आगामी चुनाव से ठीक पहले इधर या उधर का खेमा पकड़ने वाले छोटे दल-समूह भी असमंजस में हैं।

अब क्या-क्या हो सकता है, आसार देखें
जदयू के नेताओं बाहरी तौर पर 17 सीटों की बात कर रहे हैं, लेकिन वह अंतिम तौर पर 16 सीटों के लिए मान जाएगा। शेष रही 24 सीटों में से 16 सीट पर राजद किसी भी हालत में लड़ेगा। इससे कम सीट पर लड़ने से उसकी प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा, जो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। मतलब, आठ सीटें बचेंगी। इनमें कांग्रेस को चार से पांच मिल जाए और वामदल को तीन से चार सीटों में बंटवारा करना पड़े तो अजूबा नहीं होगा। जदयू ने कांग्रेस को इसके लिए सीधी सीख भी दे रखी है कि बिहार में जदयू-राजद निर्णायक हैं, आप नहीं। मतलब, कांग्रेस को समझौता कराने के लिए जदयू का भी दबाव है और राजद के पास विकल्प भी नहीं। अंतिम तौर पर अगर इस रास्ते को सभी ने नहीं माना तो लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता सिर्फ कहने के लिए बचेगी।

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