राष्‍ट्रीय

Chandrayaan-3 चांद से बस 113 km दूर विक्रम लैंडर, विक्रम लैंडर के LPDC कैमरे ने बनाया चांद का Video

नईदिल्ली

ISRO ने अपने ट्विटर हैंडल पर चांद की सतह का नया वीडियो जारी किया है. यह वीडियो बनाया है विक्रम लैंडर (Vikram Lander) पर लगे LPDC सेंसर ने. असल में यह एक कैमरा है, जिसका पूरा नाम है लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (Lander Position Detection Camera).

LPDC विक्रम लैंडर के निचले हिस्से में लगा हुआ है. यह इसलिए लगाया गया है ताकि विक्रम अपने लिए लैंडिंग की सही और सपाट जगह खोज सके. इस कैमरे की मदद से यह देखा जा सकता है कि विक्रम लैंडर किसी ऊबड़-खाबड़ जगह पर लैंड तो नहीं कर रहा है. या किसी गड्ढे यानी क्रेटर में तो नहीं जा रहा है.  

इस कैमरे को लैंडिंग से थोड़ा पहले फिर से ऑन किया जा सकता है. क्योंकि अभी जो तस्वीर आई है, उसे देखकर लगता है कि यह कैमरा ट्रायल के लिए ऑन किया गया था. ताकि तस्वीरों या वीडियो से यह पता चल सके कि वह कितना सही से काम कर रहा है. चंद्रयान-2 में भी इस सेंसर का इस्तेमाल किया गया था. वह सही काम कर रहा था.

रोपल्शन मॉड्यूल वाले रास्ते को छोड़कर दूसरा रास्ता पकड़ लिया है. यह रास्ता उसे चांद के नजदीक ले जाएगा. 18 अगस्त 2023 की दोपहर तीन बजकर 50 मिनट से पहले विक्रम लैंडर और प्रोपल्शन मॉड्यूल 153 km x 163 km की ऑर्बिट थे.

 

 

 

इसके बाद विक्रम लैंडर 113 km x 157 km की ऑर्बिट में आ गया. अब इसकी दूरी चांद की सतह से मात्र 113 किलोमीटर बची है. यानी विक्रम 113 किलोमीटर वाले पेरील्यून और 157 किलोमीटर वाले एपोल्यून में है. पेरील्यून यानी चांद की सतह से कम दूरी. एपोल्यून यानी चांद की सतह से ज्यादा दूरी. ये बात तो कल ही पक्की हो गई थी कि प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होकर विक्रम लैंडर गोलाकार ऑर्बिट में नहीं घूमेगा.

इस समय विक्रम लैंडर उल्टी दिशा में घूम रहा है. यानी रेट्रोफायरिंग कर रहा है. विक्रम लैंडर अब अपनी ऊंचाई कम करने के साथ-साथ गति भी धीमी कर रहा है. अगली डीबूस्टिंग (Deboosting) 20 अगस्त 2023 की देर रात करीब 2 बजे के आसपास होगी. तैयारी ये है कि अगली डीबूस्टिंग के बाद विक्रम लैंडर चंद्रमा से मात्र 24 से 30 km की दूरी पर पहुंच जाए.  

चांद के चारों तरफ चंद्रयान-3 का आखिरी ऑर्बिट मैन्यूवर 16 अगस्त 2023 को किया गया था. जब लॉन्चिंग हुई थी, तब इसरो प्रमुख डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा था कि चंद्रयान-3 को 100 किलोमीटर वाली गोलाकार ऑर्बिट में लाएंगे. उसके बाद प्रोपल्शन और विक्रम लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे. लेकिन इस बार ऐसा हुआ नहीं.  

 

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