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पहाड़ों की कटाई कर NHAI लाई बर्बादी, शिमला की आपदा पर भूवैज्ञानिक ने फोड़ा ठीकरा

नई दिल्ली
हिमाचल प्रदेश में इस सप्ताह बारिश के कारण कई जगह भूस्खलन हुए, कई सड़कें अवरुद्ध हो गईं और बड़ी संख्या में मकान ध्वस्त हो गए हैं। इन घटनाओं में लगभग 60 लोगों की मौत हुई है और मलबे में और भी लोगों के दबे होने की आशंका है। NDRF के मुताबिक, राज्य में बचाव और राहत के लिए केंद्रीय बल की 29 टीमों को तैनात किया गया है जिनमें से 14 सक्रिय हैं जबकि बाकी को तैयार अवस्था में रखा गया है। इसके अलावा एसडीआरएफ, सेना, वायुसेना, पुलिस और स्थानीय अधिकारी प्रभावित इलाकों में बचाव अभियान चला रहे हैं।

इस बीच, भारी बारिश से राष्ट्रीय राजमार्ग 5 के साथ-साथ कालका-शिमला सड़क का 40 किलोमीटर लंबा भाग परवाणु-सोलन मार्ग के कई हिस्से भूस्खलन की वजह से बर्बाद हो गए। भूवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस आपदा के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को जिम्मेदार ठहराया है। भूवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर सड़क चौड़ीकरण की अत्यधिक आवश्यकता थी, तो सड़क का अलाइनमेंट बदला जा सकता था या वहां सुरंगों का निर्माण किया जा सकता था।

पंजाब विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग में मानद प्रोफेसर और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक ओम भार्गव ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "पहाड़ों की लगभग ऊर्ध्वाधर कटाई ने ढलानों को अस्थिर कर दिया है। बारिश हो या न हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। देर-सबेर,ये  ढलानें तो संतुलन स्थापित करती हीं और इसके लिए वह नीचे की ओर ही खिसकतीं।''

उन्होंने कहा कि वर्टिकल कटिंग का मतलब है कि पहाड़ का ढलान 90 डिग्री के बेहद करीब हो जाता है, जबकि भूवैज्ञानिकों के मुताबिक ढलान 60 डिग्री से कम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसी वजह से राजमार्ग के ढलानों पर लगातार पत्थरों की बारिश हो रही है, जिससे नियमित अंतराल पर राजमार्ग की एक लेन पर यातायात बाधित हो रहा है।

 

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