राजनीतिक

INDIA और NDA दोनों को दे रहे मैसेज- नीतीश कुमार ना किसी के परमानेंट दोस्त और ना ही दुश्मन

 नई दिल्ली

राजनीति में ना तो दोस्ती परमानेंट है और ना ही दुश्मनी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश पर भी यह बात सटीक बैठती है। वह अपने सियासी करियर में इसके कई उदाहरण भी छोड़ चुके हैं। 2005 से बिहार की सियासत में शिखर पर रहने वाले नीतीश कुमार इन दिनों बीजेपी के खिलाफ लोकसभा चुनाव के लिए तैयार INDIA के सक्रिय पार्टनर हैं। वह नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए लगातार पूरे विपक्ष को एकजुट करने में लगे हैं। हालांकि, इस दौरान वह बीच-बीच में अपने पुराने दोस्त यानी बीजेपी से अपने संबंध सुधारते हुए भी दिख रहे हैं। उनके सियासी कदम ने बिहार के विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

भारत ने हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान 20 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों की शानदार मेजबानी की है। दो दिवसीय आयोजन के पहले ही दिन राष्ट्रपति के द्वारा डिनर का आयोजन किया गया था। इसके लिए विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी आमंत्रित किया गया था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस डिनर में शामिल होने के लिए पटना से दिल्ली पहुंचे। यहां उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी होती है। दोनों गर्मजोशी से एक-दूसरे के साथ मिलते दिखते हैं। पीएम मोदी ने खुद अपने इंस्टाग्राम हैंडल के जरिए जो तस्वीरें जारी की, उनमें दोनों के मधुर संबंध की बानगी देखने को मिलती है। इन तस्वीरों के बाद बिहार की सियासत में गहमागहमी बढ़ गई है।

18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। इसके एजेंडे भी सामने आ चुके हैं। इस सबके बीच केंद्र सरकार ने 'एक देश, एक चुनाव' के मुद्दे पर एक कमेटी का गठन कर सियासी दिग्गजों को चौंका दिया। इसकी अध्यक्षता देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं। कोविंद दो दिवसीय दौरे पर बिहार पहुंचे हैं। कल रात वह राजभवन के मेहमान थे। उनसे मिलने के लिए राजभवन पहुंचने वालों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल थे।

पीएम के भरोसेमंद हैं कोविंद
नीतीश कुमार या उनकी पार्टी के नेताओं के द्वारा इन मुलाकातों को भले ही सामान्य तौर पर पेश करने की कोशिश की जा रही हो, लेकिन वास्तविक्ता यह है कि जब सियासी लोग आपस में मिलते हैं तो सियासी संभावनों पर चर्चा की बात को नजरअंदाज करना संभव नहीं है। आपको बता दें कि रामनाथ कोविंद पीएम मोदी के भरोसमंद माने जाते हैं। राष्ट्रपति पद से हटने के बाद लगातार पीएम और अमित शाह उनसे मिलने के लिए उनका सरकारी आवास की यात्रा करते रहे हैं। अब प्रधानमंत्री ने "एक देश, एक चुनाव'' जैसे महत्वपूर्ण घोषणा की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंपी है।

राजभवन से बढ़ा नीतीश कुमार का संपर्क
इसके अलावा नीतीश कुमार के एक और कदम पर भी बिहार में विश्लेषकों की निगाहें जा टिकी हैं। नीतीश कुमार और गवर्नर के संबंध हाल के दिनों में काफी सहज हुए हैं। मुख्यमंत्री कई मौकों पर उनसे मिलने के लिए राजभवन का दौरा करते आए हैं।

INDIA को भी लगातार मैसेज देने की कोशिश
पहले कहा गया कि नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाया जा सकता है। हालांकि, वह किसी पद की लालसा की बात को इनकार करते आ रहे हैं। हालांकि, नीतीश कुमार जैसे सियासत के माहिर खिलाड़ी के लिए यह पद काफी बौना साबित होता है। सिर्फ राष्ट्रीय संयोजक बनने के लिए बिहार के सीएम की कुर्सी खाली कर देना कहीं से भी बुद्धिमानी भरा फैसला नहीं होगा। अगर संयोजक नहीं तो फिर क्या? प्रधानमंत्री पद? जी हां, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने हाल ही में एक रैली के दौरान नीतीश कुमार को पीएम पद के लिए सबसे काबिल नेता करार दिया। इसके लिए उन्होंने नीतीश कुमार की बेदाग छवि का सहारा लिया। इसके अलावा, एक अणे मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास के बाहर नीतीश कुमार को पीएम कैंडिडेट बनाने की मांग को लेकर खूब नारेजाबी भी हुई। ऐसे में इसे जेडीयू की तरफ से इंडिया गठबंधन पर दबाव बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

बिहार में भाजपा के लिए क्यों जरूरी नीतीश कुमार का साथ?
इसे समझने के लिए 2015 के विधानसभा चुनाव के परिणाम पर नजर डालते हैं। नरेंद्र मोदी 2014 में प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र में सरकार बना चुके थे। उनकी अगली परीक्षा बिहार में हुई। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन पर नीतीश कुमार की अगुवाई वाला महागठबंधन बीस साबित हुए। बीजेपी को करारी शिक्सत झेलनी पड़ी। वहीं, जब 2019 में जेडीयू-बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो 40 में से 39 सीटों पर जीत मिली।

धार्मिक ध्रुवीकरण पर भारी जातीय गठजोड़
यह बात सही है कि लोकसभा की तुलना में विधानसभा का मिजाज अलग होता है। लेकिन इस हकीकत को भी समझना होगा कि बिहार में धार्मिक मुद्दों की तुलना में जातिगत मुद्दे हावी होते हैं। यहां ध्रुवीकरण की कोशिश के सफल होने की संभावना कम होती है। जातीयण गठजोड़ हावी हो जाता है। 2024 को ध्यान में रखते हुए बिहार में बीजेपी और जेडीयू अगर फिर साथ आती है तो नरेंद्र मोदी लिए राहत की बात हो सकती है।

 

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