राजनीतिक

हरियाणा बीजेपी के भीतर नाराजगी का दौर, बाहर से आए नेताओं की डिमांड पूरी की गई

चंडीगढ़
 10 साल तक लगातार हरियाणा की सत्ता में रही बीजेपी टिकट बंटवारे के बाद असंतोष से जूझ रही है। पार्टी ने अपने पुराने पैटर्न को आजमाते हुए एक तिहाई विधायकों का टिकट दिया। टिकट कटने से ऐसे पुराने खालिस नेता भी नाराज हैं, जो दशकों से पार्टी का झंडा थामकर संघर्ष करते रहे। पार्टी ने दूसरे पार्टियों के आए नेताओं और उनके बच्चों पर मेहरबानी दिखाई। ब्यूरोक्रेट पर भी भरोसा दिखाया, पर पुराने भरोसेमंद असक्षम घोषित कर दिए गए। एंटी इम्कबेंसी के दौर में बीजेपी ने कुछ ऐसी रणनीतिक गलतियां की हैं, जिसका खमियाजा हरियाणा में भुगतना पड़ सकता है। इन ब्लंडर्स के बाद भी अगर बीजेपी हरियाणा में जीत जाती है तो इसे करिश्मा ही माना जाना चाहिए।

दिग्गजों के टिकट काटने के बहाने जम नहीं रहे

बीजेपी ने हरियाणा में अपने चार मंत्रियों समेत 15 विधायकों का टिकट काट दिया। लोकसभा चुनाव लड़ चुके टिकट के कई बड़े दावेदारों की भी छुट्टी कर दी गई। इनमें दिग्गज नेता रामबिलास शर्मा, बनवारी लाल, मोहन लाल बड़ौली, सीमा त्रिखा, जगदीश नायर जैसे नेता शामिल हैं। टिकट बंटवारे के फॉर्मूले ने बीजेपी के पुराने समर्थकों को न सिर्फ हैरान किया, बल्कि नाराज भी कर दिया है। कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। मनोहर लाल खट्टर की पहली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे रामबिलास शर्मा प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर पांच दशक से पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। वह 2019 में चुनाव हार गए, इसलिए पार्टी ने उन पर दांव नहीं लगाया। स्वास्थ्य मंत्री रहे बनवारी लाल पर दायित्व नहीं निभाने के आरोप लगे, मगर उनके नीचे काम करने वाले स्वास्थ्य सचिव को टिकट दे दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष रहे मोहन लाल बड़ौली भी जीत के लायक नहीं समझे गए। बीजेपी टिकट काटने का फॉर्मूला गुजरात, यूपी और मध्यप्रदेश में आजमा चुकी है, जहां वह सफल भी रही। हरियाणा का मिजाज अलग है, टिकट कटने से नाराजगी बढ़ेगी। एंटी इम्कंबेंसी इफेक्ट कम होगा, इसके आसार कम ही हैं।

दूसरे दल से आए नेताओं की खूब चली

टिकट बंटवारे के बाद एक समीकरण और सामने आया। कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं की मांगे पूरी हुईं। बीजेपी ने किरण चौधरी को राज्यसभा भेज दिया और उनकी बेटी श्रुति चौधरी भी तोशाम से कैंडिडेट बन गई। किरण चौधरी और श्रुति चौधरी तीन महीने पहले जून में भगवाधारी बने थे। श्रुति चौधरी लगातार दो बार लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं। 10 साल से केंद्रीय मंत्री रहे राव इंद्रजीत भी अपनी बेटी आरती को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। कांग्रेस से आए रमेश कौशिक से भाई देवेंद्र कौशिक ने नामांकन किया। आदमपुर से भव्य विश्नोई भी टिकट हासिल करने में कामयाब हुए। निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला बीजेपी की सरकारों में मंत्री रहे, मगर उन्हें टिकट नहीं दिया गया। रणजीत चौटाला देवीलाल के कुनबे से हैं और पिछले चुनाव में उन्होंने अपने दम पर रानियां विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी। अब वह जेजेपी के समर्थन से चुनाव मैदान में हैं।

नायब सिंह सैनी के नेतृत्व और चेहरे पर भी सवाल

बीजेपी हरियाणा में ब्राह्मण, बनिया और गैर जाट ओबीसी वोटरों की गोलबंदी से जीतती रही है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीएम बनाए गए नायब सिंह सैनी हरियाणा में बीजेपी के सीएम के चेहरा बनाए गए हैं। मनोहर लाल खट्टर के खास माने जाने वाले सैनी पांच महीने तक सीएम हैं। उन्होंने लोकलुभावन योजनाओं से जनता की नाराजगी दूर करने की कोशिश की, मगर इतने कम वक्त में वह गैर जाट ओबीसी नेता का सर्वमान्य चेहरा नहीं बन सके हैं। हरियाणा में सैनी वोटर सिर्फ 8 फीसदी है। पार्टी ने जिन नेताओं के टिकट काटे हैं, उनमें से अधिकतर गैर जाट ही हैं। सीएम पद के दावेदार राव इंद्रजीत और अनिल विज भी हैं, जो काफी ताकतवर हैं। सबसे बड़ी दिक्कत सीएम की विधानसभा सीट को लेकर है। कभी नारायणगढ़ से विधायक रहे सैनी करनाल से चुनाव लड़ चुके है और अब लाडवा से मैदान में है। उनकी सीट बदलने को कॉन्फिडेंस की कमी मानी जा रही है।

मनोहर लाल खट्टर और राव इंद्रजीत की खटपट

पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर केंद्र की राजनीति में चले गए मगर हरियाणा में उन्होंने अपनी दखल बनाए रखी। सूत्रों के अनुसार, टिकट बंटवारे को लेकर राव इंद्रजीत से खटपट के कारण बीजेपी की दूसरी लिस्ट काफी समय तक अटकी रही। अहीरवाल वोटरों को बीजेपी के पाले में लाने का श्रेय राव इंद्रजीत को ही जाता है। मगर चुनाव से ठीक पहले पार्टी के भीतर खींचतान नजर आई, इससे पार्टी में कार्यकर्ताओं के भीतर गलत संदेश गया। राव इंद्रजीत की पैरवी के बाद भी वरिष्ठ नेता रामबिलास शर्मा को टिकट नहीं दिया गया। टिकट बंटवारे से असंतोष, नेताओं की नाराजगी और गुटबाजी के कारण चुनाव में भितरघात की आशंका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। बता दें कि खींचतान के बाद भी कांग्रेस की लिस्ट आने के बाद ज्यादा होहल्ला नहीं हुआ, जितना बीजेपी के नेता कैमरे पर रोते-पीटते नजर आए। इसका चुनावी असर होना भी स्वाभाविक है।

मनोहर लाल के साये से निकल नहीं पाए नायब सैनी

2019 से ही हरियाणा के जाट वोटर बीजेपी से छिटकते चले गए। ओडीओपी, अग्निवीर और किसान आंदोलन के कारण बीजेपी से जाटों की दूरी बढ़ती गई। इसका असर अन्य जातियों के वोटरों पर भी पड़ा। करीब साढ़े नौ साल तक सीएम रहे मनोहर लाल खट्टर राज्य में इन मुद्दों को संभाल नहीं सके। सबसे बड़ी चूक बीजेपी की रही कि केंद्र में खट्टर के जाने के बाद भी हरियाणा में उनका प्रभाव बना रहा। सीएम नायब सिंह सैनी के कामकाज और फैसलों पर मनोहर लाल की छाप ही नजर आई। जनता भी मानती है कि हरियाणा को अभी भी खट्टर ही चला रहे हैं। बीजेपी गुजरात और कर्नाटक में भी चुनाव से पहले सीएम का चेहरा बदल चुकी है, मगर जीत उसे सिर्फ एक ही राज्य में मिलती रही है। कर्नाटक में भी बसवराज बोम्मई सीएम बनने के बाद येदियुरप्पा के साये से बाहर नहीं आ सके। नतीजा यह रहा कि कर्नाटक में बीजेपी हार गई।

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